ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 26
भारत में रहकर अपने कर्तव्य-कर्मों में संलग्न रहने वाले ब्राह्मण तथा सूर्य भक्त शरीर त्यागने पर सूर्यलोक में जाते हैं और पुण्यभोग के पश्चात् पुन: भारतवर्ष में जन्म पाते हैं। अपने धर्म में निरत रहकर शिव, शक्ति तथा गणपति की उपासना करने वाले ब्राह्मण शिवलोक में जाते हैं; फिर उन्हें लौटकर भारतवर्ष में आना पड़ता है। जो धर्मरहित होने पर भी निष्काम भाव से श्रीहरि का भजन करते हैं, वे भी भक्ति के बल से श्रीहरि के धाम में चले जाते हैं। साध्वि! जो अपने धर्म का पालन नहीं करते, वे आचारहीन, कामलोलुप लोग अवश्य ही नरक में जाते हैं। चारों ही वर्ण अपने धर्म में कटिबद्ध रहने पर ही शुभकर्म का फल भोगने के अधिकारी होते हैं। जो अपना कर्तव्य-कर्म नहीं करते, वे अवश्य ही नरक में जाते हैं। कर्म का फल भोगने के लिए वे भारतवर्ष में नहीं आ सकते। अतएव चारों वर्णों के लिए अपने धर्म का पालन करना अत्यन्त आवश्यक है। अपने धर्म में संलग्न रहने वाले ब्राह्मण, स्वधर्मनिरत विप्र को अपनी कन्या देने के फलस्वरूप चन्द्रलोक को जाते हैं और वहाँ चौदह मन्वन्तर काल तक रहते हैं। साध्वि! यदि कन्या को अलंकृत करके दान में दिया जाए तो उससे दुगुना फल प्राप्त होता है। उन साधु पुरुषों में यदि कामना हो तब तो वे चन्द्रमा के लोक में जाते हैं। निष्काम भाव से दान करें तो वे भगवान विष्णु के परम धाम में पहुँच जाते हैं। गव्य[1], चाँदी, सुवर्ण, वस्त्र, घृत, फल और जल ब्राह्मणों को देने वाले पुण्यात्मा पुरुष चन्द्रलोक में जाते हैं। साध्वि! एक मन्वन्तर तक वे वहाँ सुविधापूर्वक निवास करते हैं। उस दान के प्रभाव से उन्हें वहाँ सुदीर्घ काल तक निवास प्राप्त होता है। पतिव्रते! पवित्र ब्राह्मण को सुवर्ण, गौ और ताम्र आदि द्रव्य का दान करने वाले सत्पुरुष सूर्यलोक में जाते हैं। वे भय-बाधा से शून्य हो, उस विस्तृत लोक में सुदीर्घ काल तक वास करते हैं। जो ब्राह्मणों को पृथ्वी अथवा प्रचुर धान्य दान करता है, वह भगवान विष्णु के परम सुन्दर श्वेतद्वीप में जाता है और दीर्घकाल तक वहाँ वास करता है। भक्तिपूर्वक ब्राह्मण को गृह-दान करने वाले पुरुष स्वर्गलोक में जाते हैं और वहाँ दीर्घकाल तक निवास करते हैं; वे उस लोक में उतने वर्षों तक रहते हैं, जितनी संख्या में उस दान-गृह के रजःकण हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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