ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 21
मैं तुम्हारे शाप को सत्य करने के लिये भारतवर्ष में ‘पाषाण’ (शालग्राम) बनकर रहूँगा। गण्डकी नदी के तट पर मेरा वास होगा। वहाँ रहने वाले करोड़ों कीड़े अपने तीखे दाँतरूपी आयुधों से काट-काटकर उस पाषाण में मेरे चक्र का चिह्न करेंगे। जिसमें एक द्वार का चिह्न होगा, चार चक्र होंगे और जो वनमाला से विभूषित होगा, वह नवीन मेघ के समान श्यामवर्ण का पाषाण ‘लक्ष्मी-नारायण’ का बोधक होगा। जिसमें एक द्वार और चार चक्र के चिह्न होंगे तथा वनमाला की रेखा नहीं प्रतीत होती होगी, ऐसे नवीन मेघ की तुलना करने वाले श्याम रंग के पाषाण को ‘लक्ष्मीजनार्दन’ की संज्ञा दी जानी चाहिये। दो द्वार, चार चक्र और गाय के खुर के चिह्न से सुशोभित एवं वनमाला के चिह्न से रहित श्याम पाषाण को भगवान ‘राघवेन्द्र’ का विग्रह मानना चाहिये। जिसमें बहुत छोटे दो चक्र के चिह्न हों, उन नवीन मेघ के समान कृष्णवर्ण के पाषाण को भगवान ‘दधिवामन’ मानना चाहिये, वह गृहस्थों के लिये सुखदायक है। अत्यन्त छोटे आकार में दो चक्र एवं वनमाला से सुशोभित पाषाण स्वयं भगवान ‘श्रीधर’ का रूप है- ऐसा समझना चाहिये। ऐसी मूर्ति भी गृहस्थों को सदा श्री सम्पन्न बनाती है। जो पूरा स्थूल हो, जिसकी आकृति गोल हो, जिसके ऊपर वनमाला का चिह्न अंकित न हो तथा जिसमें दो अत्यन्त स्पष्ट चक्र के चिह्न दिखायी पड़ते हों, उस शालग्राम शिला की ‘दामोदर’ संज्ञा है। जो मध्यम श्रेणी का वर्तुलाकार हो, जिसमें दो चक्र तथा तरकस और बाण के चिह्न शोभा पाते हों, एवं जिसके ऊपर बाण से कट जाने का चिह्न हो, उस पाषाण को रण में शोभा पाने वाले भगवान ‘रणराम’ की संज्ञा देनी चाहिये। जो मध्यम श्रेणी का पाषाण सात चक्रों से तथा छत्र एवं तरकस से अलंकृत हो, उसे भगवान ‘राजराजेश्वर’ की प्रतिमा समझे। उसकी उपासना से मनुष्यों को राजा की सम्पत्ति सुलभ हो सकती है। चौदह चक्रों से सुशोभित तथा नवीन मेघ के समान रंग वाले स्थूल पाषाण को भगवान ‘अनन्त’ का विग्रह मानना चाहिये। उसके पूजन से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- ये चारों फल प्राप्त होते हैं। जिसकी आकृति चक्र के समान हो तथा जो दो चक्र, श्री और गो-खुर के चिह्न से शोभा पाता हो, ऐसे नवीन मेघ के समान वर्ण वाले मध्यम श्रेणी के पाषाण को भगवान ‘मधुसूदन’ समझना चाहिये। केवल एक चक्र वाला ‘सुदर्शन’ का, गुप्तचक्र-चिह्न वाला ‘गदाधर’ का तथा दो चक्र एवं अश्व के मुख की आकृति से युक्त पाषाण भगवान ‘हयग्रीव’ का विग्रह कहा जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |