ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 16
स्त्रीजित मनुष्य की तो आजीवन शुद्धि नहीं होती। चिता पर जलते समय ही वह इस पाप से मुक्त होता है। स्त्रीजित मनुष्य के पितर उसके दिये हुए पिण्ड और तर्पण को इच्छा पूर्वक ग्रहण नहीं करते। देवता भी उसके समर्पण किये हुए पुष्प और जल आदि के लेने में सम्मत नहीं होते। जिसके मन को स्त्री ने हरण कर लिया है, उस व्यक्ति को ज्ञान, तप, जप, होम, पूजन, विद्या अथवा यश से क्या लाभ हुआ? मैंने विद्या का प्रभाव जानने के लिये ही आपकी परीक्षा की है। कारण, कामिनी स्त्री का प्रधान कर्तव्य है कि कान्त की परीक्षा करके ही उसे पतिरूप में स्वीकार करे। गुणहीन, वृद्ध, अज्ञानी, दरिद्र, मूर्ख, रोगी, कुरुप, परम क्रोधी, अशोभन मुख वाले, पंगु, अंगहीन, नेत्रहीन, बधिर, जड, मूक तथा नपुंसक के समान पापी वर को जो अपनी कन्या देता है, उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है। शान्त, गुणी, नवयुवक, विद्वान तथा साधु स्वभाव वाले वर को अपनी कन्या अर्पण करने वाले पुरुष को दस अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। जो व्यक्ति कन्या को पाल-पोसकर विपत्तिवश अथवा धन के लोभ से बेच देता है, वह ‘कुम्भीपाक’ नरक में पचता है।[1] उस पापी को नरक में भोजन के स्थान पर कन्या के मल-मूत्र प्राप्त होते हैं। कीड़ों और कौओं द्वारा उसका शरीर नोंचा जाता है। बहुत लम्बे समय तक वह कुम्भीपाक नरक में रहता है। फिर जगत में जन्म पाकर उसका रोगग्रस्त रहना निश्चित है। तप को ही सर्वस्व मानने वाले नारद! इस प्रकार कहकर देवी तुलसी चुप हो गयी। इतने में ब्रह्मा जी ने आकर कहा– शंखचूड़! तुम इस देवी के साथ क्या बातचीत कर रहे हो? अब गान्धर्व-विवाह के नियमानुसार इसे पत्नी रूप से स्वीकार कर लेना तुम्हारे लिये परम आवश्यक है; क्योंकि तुम पुरुषों में रत्न हो और यह साध्वी देवी भी कन्याओं में रत्न समझी जाती है। इसके बाद ब्रह्मा जी ने तुलसी से कहा– ‘पतिव्रते! तुम ऐसी गुणी पति की क्या परीक्षा करती हो? देवता, दानव और असुर– सबको कुचल डालने की इसमें शक्ति है। जिस प्रकार भगवान नारायण के पास लक्ष्मी, श्रीकृष्ण के पास राधिका, मेरे पास सावित्री, भगवान वाराह के पास पृथ्वी, यज्ञ के पास दक्षिणा, अत्रि के पास अनुसूया, नल के पास दमयन्ती, चन्द्रमा के पास रोहिणी, कामदेव के पास रति, कश्यप के पास अदिति, वसिष्ठ के पास अरुन्धती, गौतम के पास अहल्या, कर्दम के पास देवहूति, बृहस्पति के पास तारा, मनु के पास शतरूपा, अग्नि के पास स्वाहा, इन्द्र के पास शची, गणेश के पास पुष्टि, स्कन्द के पास देवसेना तथा धर्म के पास साध्वी मूर्ति पत्नी रूप से शोभा पाती हैं, वैसे ही तुम भी इस शंखचूड़ सौभाग्यवती प्रिया बन जाओ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यः कन्यापालनं कृत्वा करोति विक्रयं यदि। विपदा धनलोभेन कुम्भीपाकं स गच्छति।।(प्रकृतिखण्ड 16। 98)
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