ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 11-12
श्री राधा ने कहा– प्राणेश! आपके प्रसन्न मुखकमल को मुस्कराकर निहारने वाली यह कल्याणी कौन है? इसके तिरछे नेत्र आपको लक्ष्य कर रहे हैं। इसके भीतर मिलनेच्छा का भाव जाग्रत है। आपके मनोहर रूप ने इसे अचेत कर दिया है। इसके सर्वांग पुलकित हो रहे हैं। वस्त्र से मुख ढँककर बार-बार आपको देखा करना मानो इसका स्वभाव ही बन गया है। आप भी उसकी ओर दृष्टिपात करके मधुर-मधुर हँस रहे हैं। आप अनेक बार ऐसा करते हैं और कोमल-स्वभाव की स्त्री-जाति होने के कारण प्रेमवश मैं क्षमा कर देती हूँ। आपने ‘विरजा’[1] से प्रेम किया। फिर वह अपना शरीर त्यागकर महान नदी के रूप में परिणत हो गयी। आपकी सत्कीर्तिस्वरूपिणी वह देवी नदी रूप में अब भी विराजमान है। आपके औरस पुत्र के रूप में उससे समयानुसार सात समुद्र उत्पन्न हो गये। प्राणनाथ! आपने ‘शोभा’ से प्रेम किया। वह भी शरीर त्यागकर चन्द्रमण्डल में चली गयी। तदनन्तर उसका शरीर परम स्निग्ध तेज बन गया। आपने उस तेज को टुकड़े-टुकड़े करके वितरण कर दिया। रत्न, सुवर्ण, श्रेष्ठ मणि, स्त्रियों के मुखकमल, राजा, पुष्पों की कलियाँ, पके हुए फल, लहलहाती खेतियाँ, राजाओं के सजे-धजे महल, नवीन पात्र और दूध– ये सब आपके द्वारा उस शोभा के कुछ-कुछ भाग पा गये। मैंने आपको ‘प्रभा’ के साथ प्रेम करते देखा। वह भी शरीर त्यागकर सूर्यमण्डल में प्रवेश कर गयी। उस समय उसका शरीर अत्यन्त तेजोमय बन गया था। उस तेजोमयी प्रभाव को आपने विभाजन करके जगह-जगह बाँट दिया। श्रीकृष्ण! आपकी आँखों से दूर हुई प्रभा अग्नि, यक्ष, नरेश, देवता, वैष्णवजन, नाग, ब्राह्मण, मुनि, तपस्वी, सौभाग्यवती स्त्री तथा यशस्वी पुरुष– इन सबको थोड़े-थोड़े रूपों में प्राप्त हुई। एक बार मैंने आपको ‘शान्ति’ नामक गोपी के साथ रासमण्डल में प्रेम करते देखा था। प्रभो! वह शान्ति भी अपने उस शरीर को छोड़कर आप में लीन हो गयी। उस समय उसका शरीर उत्तम गुण के रूप में परिणत हो गया। तदनन्तर आपने उसको विभाजित करके विश्व में बाँट दिया। प्रभो! उसका कुछ अंश मुझ राधा में, कुछ इस निकुंज में और कुछ ब्राह्मण में प्राप्त हुआ। विभो! फिर आपने उसका कुछ भाग शुद्ध सत्त्वस्वरूपा लक्ष्मी को, कुछ अपने मन्त्र के उपासकों को, कुछ वैष्णवों को, कुछ तपस्वियों को, कुछ धर्म को और कुछ धर्मात्मा पुरुषों को सौंप दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रजोगुणरहिता देवी
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