ब्रह्मा, ब्रह्मा की शक्ति नित्य में -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


ब्रह्म, ब्रह्म की शक्ति नित्य में नहीं कभी रञ्चक भी भेद।
जो वह, वही तुम्हीं हो, है निश्चय दोनों में नित्य अभेद॥1॥
शक्ति न हो तो कहीं रहेगा कभी न शक्तिमान का रूप।
शक्तिमान के बिना शक्ति को कहीं न होगा स्थान अनूप॥2॥
शक्ति प्राण है शक्तिमान का, शक्तिमान है शक्ति-प्राण।
दोनों से दोनों की सत्ता है, अन्यथा उभय निष्प्राण॥3॥
नहीं कभी होता असङ्ग, चिन्मात्र ब्रह्म से विश्व-विकास।
पराशक्ति के समाश्रयण से ही होता सब भाँति प्रकाश॥4॥
कारण रूप जगत्‌‌ की है वह परमोत्कृष्ट पूर्ण पर-शक्ति।
इसीलिये हरि-हर-ब्रह्मा सब देव कर रहे उनकी भक्ति॥5॥
जगकी बात अलग, उन तीनों का भी जो है निज अस्तित्व।
एकमात्र कारण है उसमें, नित परिपूर्ण शक्ति का तत्त्व॥6॥
शक्ति बिना शिव ’शव’ हो जाते, विष्णु ’अविष्णु’, रमासे हीन।
हो अभाव यदि ब्रह्म-शक्ति का, विधि ’अशक्त’ हो जाते दीन॥7॥
राधे बिना कृष्ण ’आधे’ हैं, सीताहीन राम ’अति दीन’।
नहीं ’देव’ हो को‌ई, वह यदि हो ’देवत्व-शक्ति’ से हीन॥8॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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