ब्रज मैं जोग करत जुग बीते।
बिना स्याम सुंदर के सजनी, मदन दूत तन जीते।।
ज्यौ ज्यौ निठुर बचन सुनियत है, जरत हमारे पीते।
अब किन सुरति करै गोकुल की, क्यौ त्यागी हम जी तै।।
सरवस दयौ स्याम कै कारन, हम आपनौ तब ही तै।
‘सूरजदास’ हमारे लोचन, भए कान्ह बिनु रीते।।3695।।