ब्रज बसि काके बोल सहौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


ब्रज बसि काके बोल सहौं।
तुम बिनु स्याम और नहीं जानौं, सकुचि न तुमहिं कहौं।।
कुल की कानि कहा लै करिहौं तुमकौं कहाँ लहौं।
धिक माता, धिक पिता बिमुख तुब भावै तहाँ बहौ।।
कौउ कछु करै, कहै कछु कोऊ, हरष न सोक गहौं।
सूर स्याम तुमकौं बिनु देखैं, तनु मन जीव दहौं।।1686।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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