ब्रज बसि काके बोल सहौं।
तुम बिनु स्याम और नहीं जानौं, सकुचि न तुमहिं कहौं।।
कुल की कानि कहा लै करिहौं तुमकौं कहाँ लहौं।
धिक माता, धिक पिता बिमुख तुब भावै तहाँ बहौ।।
कौउ कछु करै, कहै कछु कोऊ, हरष न सोक गहौं।
सूर स्याम तुमकौं बिनु देखैं, तनु मन जीव दहौं।।1686।।