ब्रज बनिता यह कहतिं स्याम सौं, दूध दह्यौ अरु ल्यावैं।।
मटुकनि तैं हम देहिं खाहु तुम, देखि देखि सुख पावैं।।
गोरम बहुत हमारै घर-घर, दान पाछिलै लेहु।
खायौ जौन दान आजुहिं कौं, माँगत है सब देहु।।
सबै लेहु, राखहु जिनि बाकी, पुनि न पाइहौ माँगै।
आजुहिं लेहु सबै भरि दैहैं, कहति तुम्हारे आगैं।।
कहत स्याम अब भई हमारी, मनहिं भई परतीति।
जब चैहैं तब माँगि लेहिंगे, हमहिं तुमहिं भई प्रीति।।
बेंचहु जाइ दूध दधि निधरक, घाट-वाट डर नाहीं।
सूर स्याम-बस भई ग्वारिनी, जात बनत घर नाहीं।।1610।।