ब्रज पर सजि पावस दल आयौ।
धुरवा धुध उठी दसहूँ दिसि, गरज निसान बजायौ।।
चातक, मोर, इतर पैदर गन, करत आवाजै कोयल।
स्याम घटा गज, असनि बाजि रथ, बिच बगपाँति सँजोयल।।
दामिनि कर करवाल, बूँद सर, इहि विधि साजे सैन।
निधरक भयौ चल्यौ ब्रज आवत, अग्र फौजपति मैन।।
हम अबला जानियै तुमहि बल, कहौ कौन विधि कीजै।
‘सूर’ स्याम अबकै इहि अवसर, आनि राखि ब्रज लीजै।। 3304।।