ब्रज तजि गए माधव कालि ।
स्याम सुंदर कमल लोचन, क्यौ बिसारौं आलि ।।
बैठि निसि बासर बिसूरति, बिकल चहुँ दिसि भारि ।
कह करौ कृत कर्म अपनौ, काहि दीजै गारि ।।
तज्यौ भोजन भवन भूषन, अति बियोग बिहाल ।
हित नहीं कोउ काहि पठवौ, करि रही जिय लाल ।।
धोख ही धोखै दगा दै, कूर ग्यौ रथ चालि ।
‘सूर’ के प्रभु कहति जसुदा, कहा पायौ पालि ।। 3167 ।।