ब्रज-वासी यह सुनि सब आए।
कहाँ पन्यौ गिरि कुँवर कन्हैया, बालक लै सो ठौर दिखाए।
सूनौ गोकुल कियौ स्याम तुम, यह कहि लोग उठे सब रोइ।
नंद गिरत सबहिनि घरि राख्यौ, पोंछत बदन नोर लै धोइ।
ब्रज-बासो तब कहत महर सौं, मरन भयौ सबही कौ आइ।
सूर स्याम बिनु को बसिहै ब्रज, धिक जावन तिहुँ भुवन कहाइ।।545।।