ब्रज-बासी पटतर कोउ नाहिं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



ब्रज-बासी पटतर कोउ नाहिं।
ब्रह्म, सनक, सिव ध्‍यान न आवैं, इनकी जूठनि लै-लै खाहिं।
धन्‍य नंद धनि जननि जसोदा, धन्‍य जहाँ अवतार कन्‍हाइ।
धन्‍य-धन्‍य वृंदावन के तरु, जहाँ बिहरत त्रिभुवन के राइ।
हलधर कहत छाक जेंवत सँग मीठौ लगत सराहत जाइ।
सूरदास प्रभु बिस्‍वंभर हरि सो ग्‍वालनि के कौर अघाइ।।469।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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