ब्रज-नर-नारि नंद जसुमति सौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट


ब्रज-नर-नारि नंद जसुमति सौं, कहत स्याम ये काज करे।
कुल-देवता हमारे सुरपति, तिनकौं सब मिलि मेटि धरे।।
इंद्रहिं मेटि गोबर्धन थाप्यौ, उनकी पूजा कहा सरे।
सैंतत फिरत जहाँ-तहाँ बासन, लरिकनि लै-लै गोद भरे।।
को करि लेइ सहाइ हमारी, प्रलय काल के मेघ अरे।
सूरदास सब कहत नारि-नर, क्यौं सुरपति-पूजा बिसरे।।862।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः