ब्रज-नर-नारि नंद जसुमति सौं, कहत स्याम ये काज करे।
कुल-देवता हमारे सुरपति, तिनकौं सब मिलि मेटि धरे।।
इंद्रहिं मेटि गोबर्धन थाप्यौ, उनकी पूजा कहा सरे।
सैंतत फिरत जहाँ-तहाँ बासन, लरिकनि लै-लै गोद भरे।।
को करि लेइ सहाइ हमारी, प्रलय काल के मेघ अरे।
सूरदास सब कहत नारि-नर, क्यौं सुरपति-पूजा बिसरे।।862।।