ब्रजवनिता देखति नँदनंदन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


ब्रजवनिता देखति नँदनंदन।
नव-घन-नील-बरन, ता ऊपर खौरि कियो तनु चंदन।।
कनक बरन तन पीत पिछौरी, उर भ्राजति बनमाल।
निर्मल-गगन-स्वेत-बादर पर, मनो दामिनी जाल।।
मुक्तामाल विपुल वगपगति, उड़त एक भई जोति।
सूर स्याम-छबि निरखत जुवती, हरष परस्पर होति।।1800।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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