बौरे मन समुझि-समुझि कछु चेत -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग गौरी



            

बौरे मन, समुझि-समुझि कछु चेत।
इतनौ जन्‍म अकारथ खोयौ, स्‍याम चिकुर भए सेत।
तब लगि सेवा करि निस्‍चय सौं, जब लगि हरियर खेत।
सूरजदास भरम जनि भूलौ, करि बिधना सौं हेत।।322।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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