बोली-’मैया ! नहीं चाहिये -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग ईमन - ताल कहरवा


बोली-’मैया ! नहीं चाहिये अब मुझको कुछ भी वरदान।
बना रहे सब कुछ मेरा ज्यों-का-त्यों, बदले नहीं विधान’॥
भावोदय हो उठा विलक्षण सत्वर राधाके उर-देश-
’हम दोनों हैं सदा परस्पर प्राण-प्रिय प्रियतम प्राणेश॥
सदा एक हैं, सदा साथ हैं, होता नहीं कदापि वियोग।
वे ही एक बने प्रिय-प्यारी, बने वही वियोग-संयोग’॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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