बैठी निकुजमें आली! थी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग पीलू - ताल कहरवा


बैठी निकुञ्ज में आली! थी ध्यानमग्र सब कुछ तज।
एकान्त हृदय-मन्दिर में यों थी मैं रही उन्हें भज॥
मेरे मन की ये बातें सुनकर वे प्यारे मोहन।
हो गये प्रकट यमुना-तट की उस निकुज में सोहन॥
उरसे अन्तर्हित सहसा हो गये प्राण जीवनधन।
व्याकुलता उदय हु‌ई अति, खुल गये नेत्र बस, तत्क्षण॥
वे देख रहे थे मुझको रसभरे दृगों से अपलक।
मिलने की उठी हृदय में अत्यन्त तीव्रतम सु-ललक॥
बस, मुझे लगा ली उरसे निज स्वयं भुजा‌ओं में भर।
रसभरे दृगों से आँसू बह चले प्रेम के झर-झर॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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