बेगि चलौ पिय कुँवर कन्हाई।
जा-कारन तुम यह बन सेयौ, सो तिय मदन-भुअंगम खाई।।
नैन सिथिल, सीतल नासा-पुट, अंग तपति कछु सुधि न रहाई।
सकसकात तन भीजि पसीना, उलटि पलटि तन तोरि जम्हाई।।
अनजानत मूरनि कौं जित-तित, उठि दौरी जिनि जहाँ बताई।
ताहि कछू उपचार न लागत, कर मीडैं सहचरि पछिताई।।
तुम दरसन इक बार मनोहर, यह औषधि इक सखी लखाई।
जौ सूरज प्रभु ज्यायौ चाहत, तो ताकौ अब देहु दिखाई।।748।।