बृन्दावन खेलत हरि होरी -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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बृन्दावन खेलत हरि होरी।
बाजत ताल मृदंग झाँझ डफ नंदलाल वृषभानुकिसोरी।।
हौ अपनै गृह तै निकसी सखि सास की त्रास ननद की चोरी।
और सखी सब छाँड़ि स्याम मो कर मरोरि पहुँची गहि तोरी।।
स्यामबरन अति सुदर साँवरी कनकबदन राधे तनु गोरी।
‘सूरज’ के प्रभु दोऊ राजत पारस कंचन की सी जोरी।। 123 ।।

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