बिहरत ब्रज बीथिनि बृंदावन -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग होरी




बिहरत ब्रज बीथिनि बृंदावन, गोपी जमुना बारी।
लाल पाग सिर, लाल छरै करी जुहीमाल गिरिधारी।।
देखि देखि फूले ब्रज बासी, सुख की रासि बिचारी।
कुसुमावलि बरखत इद्रादिक, 'सूरदास' बलिहारी।। 118 ।।

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