बिनवै चतुरानन कर जोरे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार



बिनवै चतुरानन कर जोरे।
तुव प्रताप जान्‍यो नहिं प्रभु जू, करै अ‍स्‍तुति लट छोरे।
अपराधी, मति हीन, नाथ हों चूक परी निज भोरे।
हम कृत दोष छमौ करुनामय, ज्‍यौं भू परसत ओरे।
जुग जुग बिरद यहै चलि आयौ, सत्‍य कहत अब होरे।
सूरदास प्रभु पछिले खेवा, अब न बनै मुख मोरे।।488।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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