बिधि सौ अरध पाँवडे दीन्हें, अंतर प्रेम बढ़ायौ।।
आदर बहुत कियौ कमलापति, मर्दन करि अन्हवायौ।
चंदन अगर कुमकुमा केसर, परिमल अंग चढायौ।।
मुठिक तदुल बाँधि कृष्न कौं, बनिता बिनय पठायौ।
पूरब प्रीति जानि कै मोहन, तातै कछु इक खायौ।।
समदे विप्र सुदामा घर कौ, सरबस दै पहिरायौ।
'सूरदास' बलि बलि मोहन की, तिहूँ लोक पद पायौ।। 4232।।