बिछुरत श्री ब्रजराज आजु, इनि नैननि की परतीति गई।
उड़ि न गए हरि संग तबहिं तै, ह्वै न गए सखि स्याम मई।।
रूप रसिक लालची कहावत, सो करनी कछुवै न भई।
साँचे कूर कुटिल ये लोचन, वृथा मीन छवि छीन लई।।
जल काहै जल मोचत, सोचत, समौ गए तै सूल नई।
'सूरदास' याही तै जड़ भए, पलकनिहूँ हठि दगा दई।।2996।।