बिचारत ही लागे दिन जान -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री



            

बिचारत ही लागे दिन जान।
सजल देह, कागद तैं कोमल, किहिं बिधि राखै प्रान ?
जिह्वा-स्‍वाद, इंद्रियनि-कारन, आयु घटति दिन मान।
और उपाइ नहीं रे बौरे, सुनि तू यह दै कान।
सूरदास अब होत बिगूचनि, भजि लै सारँगपान।।304।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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