बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 97

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

15. सुनाऊँ किसको मनकी बात

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मेरी विफलता देखने वाला कोई नहीं,
व्यथा सुननेवाला कोई नहीं,
सहानुभूति प्रकट करने वाला कोई नहीं।
मैया! तुमसे बड़ी आशा थी,
बस! थोड़ा ठहर जाओ,
अच्छा तुम न ठहरो,
मैं ही तुम्हारे साथ-साथ चलकर सुनाती हूँ।
जरा जोर से मत चलो धीरे-धीरे चलो।
मेरे पैरों में उतनी शक्ति नहीं।
हाँ तो सुनो, तुम्हारा कन्हैया............आह!
(किनारे-किनारे दोड़ रही थी, सामने बड़ा-सा गड्ढा पड़ गया, मुँह यमुना जी की ओर था, न देखने से उसी में गिर गयी। थोड़ी देर में उठ कर बैठ गयी)
हा, निर्दयी गड्ढे ने यमुना मैया से भी बात न कहने दी।
सुनाऊँ किसको मन की बात?
(फिर अचेत होकर उसी गड्ढे में पड़ रहती है।)

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क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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