मेरी विफलता देखने वाला कोई नहीं,
व्यथा सुननेवाला कोई नहीं,
सहानुभूति प्रकट करने वाला कोई नहीं।
मैया! तुमसे बड़ी आशा थी,
बस! थोड़ा ठहर जाओ,
अच्छा तुम न ठहरो,
मैं ही तुम्हारे साथ-साथ चलकर सुनाती हूँ।
जरा जोर से मत चलो धीरे-धीरे चलो।
मेरे पैरों में उतनी शक्ति नहीं।
हाँ तो सुनो, तुम्हारा कन्हैया............आह!
(किनारे-किनारे दोड़ रही थी, सामने बड़ा-सा गड्ढा पड़ गया, मुँह यमुना जी की ओर था, न देखने से उसी में गिर गयी। थोड़ी देर में उठ कर बैठ गयी)
हा, निर्दयी गड्ढे ने यमुना मैया से भी बात न कहने दी।
सुनाऊँ किसको मन की बात?
(फिर अचेत होकर उसी गड्ढे में पड़ रहती है।)