बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 91

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

15. सुनाऊँ किसको मनकी बात

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वह कह देगा,
बस-बस यह सब हम भी जानते हैं।
यह कहकर शायद वह वहाँ से चल भी दे।
ठीक यही दशा मेरी है।
यहाँ तो सभी के हृदय में घाव है,
सभी मनमोहन के विरह में तड़प रहे हैं,
सभी एक ही रोग के रोगी हैं।
कोई खुलकर आँसू बहाता है,
कोई चुपचाप पी लेता है।
हृदय की यह कसक किसी के लिये नयी बात नहीं है।
जब अपने ही हृदय में आग लगी हो
तो कोई किसी की कसक की परवा कैसे करे?

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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