बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 9

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

2. क्या मैं बावरी हूँ?

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क्षमा कर दो श्याम!
मैं तो तुम्हारे चरणों की दासी हूँ।
अब दया करो,
किन्तु तुममे दया ही होती तो जाते क्यों?
मथुरा में कौन-सा ऐसा बड़ा काम था,
अपने सुख के लिये ही तो गये हो।
तुम्हें क्या पता कि यहाँ हमारी क्या दशा है।
घर में सास जी रोज खीझती हैं,
फिर भी जी नहीं मानता,
जंगलों में भटकने चली आती हूँ,
जैसे तुम यहाँ बैठे ही हो।
जो राजसिंहासन पर बैठकर आनन्द से दिन काटता हो,
जिसे और किसी का ध्यान न आता हो,
उसकी याद में घुलना सरासर पागलपन है।
कितनी बार मैंने निश्चय किया कि
तुम्हारी परछांइ की भी बात न सोचूँगी,
किन्तु पता नहीं मैं कब सोचना आरम्भ कर देती हूँ।
तो क्या सचमुच मैं बावरी हो गयी?

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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