अरे, यह तो मथुरा से आ रही है,
तभी तो इतनी सुखप्रद है।
कन्हैया के अंगों का स्पर्श करके आयी है न?
आह! कैसी शीतल है।
ए री प्यारी हवा!
इतना सुख तूने दिया,
कहीं कन्हैया के विषय में भी कुछ सुना देती
तो तेरा बड़ा उपकार मानती।
मुझे बिना उनके कुशल-समाचार के
यह सुख सुहाता नहीं।
बोल दे बहन! कुछ कह दे,
हाय, यह भी कुछ नहीं बोलती।
अब किससे पूछूँ?
आह! मेरे श्यामसलोने कैसे हैं;
कोई तो बताये?
(चेतनाहीन होकर लुढ़क जाती है।)