हाय! मैं बहुत थक गयी।
तुम अभी तक कुछ नहीं बोले।
जाओ, तुम्हारा दोष नहीं है,
मथुरा नगरी ही ऐसी है।
जो भी एक बार वहाँ चला जाता है,
निर्दयता उसकी संगिनी हो जाती है।
जब प्रेमस्वरूप, रस की खान, दयासागर
हमारे श्यामसुन्दर ऐसे हो गये,
तब तुम तो पक्षी ही ठहरे!
अहा, शरीर में ठंढी हवा लगी,
सारी थकावट मिट गयी,
रोमाञ्च हो आया।