अरे भाई! तुममें से कोई तो बोले?
बड़े गँवार जान पड़ते हो।
मैं पूछती हूँ,
तुम मुसकराते हो।
जाओ भाई! मत बोलो।
आज साधारण-से-साधारण जीव भी
मेरा उपहास कर सकता है।
समय की बात है,
और क्या कहूँ!
अहा! कबूतरों का एक दल उधर ही से उड़ा आ रहा है।
इनके लिये तो कहीं रुकावट नहीं।
ये अवश्य ही राजभवन के आले-आलमारी में बैठकर
मोहन को देखते रहे होंगे।