बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 85

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

14. कोई तो बताये

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सोचा था, यशोदा मैया के पास तो
कुछ-न-कुछ समाचार आता ही होगा,
चलकर उनसे पूछ लूँ।
एक दिन गयी थी।
तुम्हारा नाम लेते ही फूट-फूटकर रोने लगीं वह,
मैं उल्टे पैरों भागी।
तुम्हीं बताओ,
अब दुबारा उनके पास कैसे जाऊँ।
चलूँ राह में बैठूँ,
उधर से कोई-न-कोई आता ही होगा।
हाँ, वह देखो न,
दो-चार उधर ही से तो आ रहे हैं।
भैया! मथुरा से आ रहे हो न?
हमारा कन्हैया...................
नहीं, नहीं, मथुरा नरेश महाराज श्रीकृष्णचन्द्र जी..............
आह!
कैसे हैं?
तुम तो चले ही जा रहे हो,
कुछ बोलते नहीं?

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क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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