सोचा था, यशोदा मैया के पास तो
कुछ-न-कुछ समाचार आता ही होगा,
चलकर उनसे पूछ लूँ।
एक दिन गयी थी।
तुम्हारा नाम लेते ही फूट-फूटकर रोने लगीं वह,
मैं उल्टे पैरों भागी।
तुम्हीं बताओ,
अब दुबारा उनके पास कैसे जाऊँ।
चलूँ राह में बैठूँ,
उधर से कोई-न-कोई आता ही होगा।
हाँ, वह देखो न,
दो-चार उधर ही से तो आ रहे हैं।
भैया! मथुरा से आ रहे हो न?
हमारा कन्हैया...................
नहीं, नहीं, मथुरा नरेश महाराज श्रीकृष्णचन्द्र जी..............
आह!
कैसे हैं?
तुम तो चले ही जा रहे हो,
कुछ बोलते नहीं?