बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 81

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

13. मैं भली कि मछली

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हम और कन्हैया के दुःख का कारण बनें?
मैं जीती रहूँगी।
मछली की नीति ठीक नहीं।
मैं मछली से भली हूँ।
किंतु मछली बेचारी क्या यह सोचकर मरती है कि
वह विरह-दुःख से छूट जाय?
वह विवश है,
उसका प्रेम इतना प्रगाढ़ है,
इतना वेगवान् है,
इतना पूर्ण है, कि
वह प्रिय का क्षणमात्र भी वियोग नहीं सह सकती।
प्रेम में नीति या नियम की बात कहाँ?
प्रेम तो प्रिय का संयोग जानता है।
संयोग नहीं तो कुछ नहीं।
संयोग बिना आशा, धैर्य और भावी सुख की कल्पना‘
ये सब नहीं रह जाते।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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