पपीहा को स्वाति-बूँद नहीं मिलती
तो वह मर नहीं जाता!
विकल होकर रटता रहता है।
वह इसी आशा में जीवन धारण किये रहता है कि
कभी तो मेघों का हृदय पसीजेगा।
घबराकर धैर्य छोड़ दे और
निराश होकर प्राण त्याग दे तो क्या पायेगा?
इस दृष्टि से तो हमारा जीता रहना ही उचित है।
आशा तो रहेगी,
कौन जाने प्रियतम का मन कब फिरे।
यदि वे आये और हमको न पाया तो,
कितने दुखी होंगे?
हम उनके दुःख का कारण बनेंगी।
नहीं, नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता।