बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 80

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

13. मैं भली कि मछली

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पपीहा को स्वाति-बूँद नहीं मिलती
तो वह मर नहीं जाता!
विकल होकर रटता रहता है।
वह इसी आशा में जीवन धारण किये रहता है कि
कभी तो मेघों का हृदय पसीजेगा।
घबराकर धैर्य छोड़ दे और
निराश होकर प्राण त्याग दे तो क्या पायेगा?
इस दृष्टि से तो हमारा जीता रहना ही उचित है।
आशा तो रहेगी,
कौन जाने प्रियतम का मन कब फिरे।
यदि वे आये और हमको न पाया तो,
कितने दुखी होंगे?
हम उनके दुःख का कारण बनेंगी।
नहीं, नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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