बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 78

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

13. मैं भली कि मछली

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किंतु इस पर संसार क्या कहेगा?
मोहन की कितनी निंदा होगी,
लोग कहेंगे कि उन्होंने अपने विरह में सबको मार डाला!
इस प्रकार घनश्याम मिलें भी तो हमें स्वीकार नहीं।
जब स्वतः प्राण नहीं निकलते
तो हठात् मरने में क्या रखा है।
यदि मछली को मूर्ख समझूँ तो कैसा हो?
जल से अलग होते ही तड़प-तड़प कर प्राण दे देती है।
तनिक भी धैर्य नहीं,
तनिक भी आशा नहीं,
यह भी कोई बात है।
कुछ आशा रखनी चाहिये।
हो सकता है कुछ समय बाद हम अपने प्रिय से मिल सकें।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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