किंतु इस पर संसार क्या कहेगा?
मोहन की कितनी निंदा होगी,
लोग कहेंगे कि उन्होंने अपने विरह में सबको मार डाला!
इस प्रकार घनश्याम मिलें भी तो हमें स्वीकार नहीं।
जब स्वतः प्राण नहीं निकलते
तो हठात् मरने में क्या रखा है।
यदि मछली को मूर्ख समझूँ तो कैसा हो?
जल से अलग होते ही तड़प-तड़प कर प्राण दे देती है।
तनिक भी धैर्य नहीं,
तनिक भी आशा नहीं,
यह भी कोई बात है।
कुछ आशा रखनी चाहिये।
हो सकता है कुछ समय बाद हम अपने प्रिय से मिल सकें।