बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 77

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

13. मैं भली कि मछली

Prev.png

मृत्यु के पास चली जाऊँ?
आत्महत्या कर लूँ?
नहीं, नहीं,
आत्महत्या महापाप है!
पाप-पुण्य की तो कोई बात नहीं,
आत्महत्या करने से मिलेगा क्या?
यदि कोई यह विश्वास दिला दे कि
ऐसा करने से कन्हैया मिल जायँगे
तो फिर आत्महत्या करने में क्षणभर की भी देन न लगे।
पर कौन जाने पीछे क्या होगा?
मैं समझती हूँ यदि आत्महत्या करने से श्यामसुन्दर मिलें
तो सारा ब्रज ऐसा कर ले।
कोई भी जीता न मिले।

Next.png

संबंधित लेख

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः