बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 73

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

12. कुछ न कहना

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मगर सुन तो, तू किस समय कहेगी?
जब कोई न हो,
बिल्कुल एकान्त हो,
रात्रि का सयम हो,
चन्द्रिका छिटकी हो,
उनको नींद न आयी हो,
वे चन्द्रमा की ओर देखते हों,
गम्भीर मुद्रा बनाये किसी का स्मरण करते हों,
उस समय तू अपने शीतल-मन्द-सुगन्ध रूप को बना करके
चुपके से जाना।
थोड़ी देर में अपनी बात समाप्त करके कहना-
तुम्हारी........तुम्हा.......री...........
अरे, तू अपनी ओर से कुछ कह देना।
पर न जाने तू क्या कह दे,
हाय राम, मैं क्या कहलाऊँ?

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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