बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 72

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

12. कुछ न कहना

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तुमसे बात करते-करते तो आधी दूर निकल आयी।
किंतु मुझे जाना नहीं।
तू भी लौट चल, बहन!
छोड़ उस निर्दयी की ममता।
न मानेगी?
तू तो और जोर से चलने लगी।
ज्यों-ज्यों मथुरा निकट आती है,
तू आपे से बाहर हुई जा रही है।
तू न मानेगी, मैं तो यहीं बैठती हूँ।
मुझे लौटना है, देर हो जायगी।
बावरी! जब जा ही रही है तो मेरी भी कुछ सुन ले!
दो-चार शब्द मेरी ओर से भी कह देना।
कह देना उनसे..........
क्या कहलाऊँ!

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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