बावरी गोपी -प्रेम भिखारी 11. कूबरी! तू धन्य है हम इसी योग्य हैं कि और अधिक तड़पें, और कराहें, और जलें, और रोयें, विधि से यही प्रार्थना करती हुई प्राण दे दें कि हमारे हृदय में और प्रेम भरें। हा मनमोहन! तुम ठीक कर रहे हो। कूबरी तू धन्य है। (कहते-कहते बेसुध हो जाती है।) संबंधित लेख बावरी गोपी -प्रेम भिखारी क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या 1. कल की बात 1 2. क्या मैं बावरी हूँ? 6 3. मेरी ही भूल थी 11 4. और कूक 18 5. कैसे थे वे दिन? 23 6. कल आयेंगे 29 7. रे भौंरे, मत गूँज 37 8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44 9. हाय, यह तो स्वप्न था 52 10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58 11. कूबरी! तू धन्य है 64 12. कुछ न कहना 69 13. मैं भली कि मछली 75 14. कोई तो बताये 83 15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90 16. यह है प्रेम-परिणाम 98 17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105 18. बस, एक झलक 112 19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119 वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः