बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 62

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

10. कूबरी, तुझे धिक्कार है

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धीरे-धीरे कहाँ चली आयी।
वही झाड़, वही पेड़-
सब कुछ वही;
किंतु आज इनमें कोई आकर्षण नहीं!
तो क्या लौट चलूँ?
लौट कर कहाँ जाऊँ?
वहीं कौन-सा सुख है?
उस पलँग से तो यहाँ की धूलि ही अच्छी।
यहीं थोड़ी देर क्यों न लेटूँ?
हाय, मैं यहाँ लेटी हूँ,
गोप-गोपी, गैया और जसोदा मैया का वह हाल;
और वह कान्हा कहाँ होंगे,
कूबरी के साथ?
तूने क्या किया कूबरी!
केवल अपने सुख के लिये इतने प्राणियों को तड़पा रही है।
क्या तुझको यह पता न चलो होगा कि
मुरलीमनोहर के विरह में व्रजवासी
किस प्रकार तड़प रहे हैं?

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क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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