बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 61

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

10. कूबरी, तुझे धिक्कार है

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यह नन्दबाबा का भवन है,
दीपक जल रहा है;
कुछ शब्द आते तो हैं, तनिक सुनूँ।
हाय, जसोदा मैया रो रही हैं;
नन्दबाबा समझा रहे हैं।
अच्छी शान्ति मिली,
यहाँ से शीघ्र चल देना चाहिये।
हाँ! इस घर का गोप-बालक कन्हैया के विरह में
बीमार हो गया-सा मालूम होता है,
माता-पिता दवा पीने को कह रहे हैं।
वह ‘हा कन्हैया’, ‘हा सखे’ कहने के अतिरिक्त
कुछ कहता ही नहीं।
सारे व्रज की एक-सी ही दशा है।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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