यह नन्दबाबा का भवन है,
दीपक जल रहा है;
कुछ शब्द आते तो हैं, तनिक सुनूँ।
हाय, जसोदा मैया रो रही हैं;
नन्दबाबा समझा रहे हैं।
अच्छी शान्ति मिली,
यहाँ से शीघ्र चल देना चाहिये।
हाँ! इस घर का गोप-बालक कन्हैया के विरह में
बीमार हो गया-सा मालूम होता है,
माता-पिता दवा पीने को कह रहे हैं।
वह ‘हा कन्हैया’, ‘हा सखे’ कहने के अतिरिक्त
कुछ कहता ही नहीं।
सारे व्रज की एक-सी ही दशा है।