प्यारी सखियों!
इस प्रकार चुपचाप छवि-रस कब तक पीती रहोगी?
प्यारे कान्हा आ गये तो कुछ नाचो-गाओ।
मुझसे तो नहीं रहा जाता!
धन्य है यह घड़ी,
कितने दुःख और कितनी प्रतीक्षा के बाद आयी है।
मैं तो गाऊँगी,
‘आयो मेरा प्यारा कन्हैया’
तुम लोग मूर्ति बनी रहो, मैं तो नाचूँगी,
मुझसे रहा नहीं जाता।
(स्वप्न में उछलकर नाचना चाहती है, किंतु खाट से नीचे गिर पड़ती है।)
हाय! कन्हैया कहाँ हैं?
यह तो कुन्ज नहीं, मेरा घर है।
आह!
प्यारे मोहन, तुम नहीं आये?
हाय, यह तो स्वप्न था।
(खाट के पास धरती पर लुढ़कर अचेत हो जाती है।)