बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 55

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

9. हाय, यह तो स्वप्न था

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तुम अब तक कुछ बोले नहीं श्याम!
कुछ तुम भी कहो।
हमारी कहाँ तक सुनोगे,
हमारा रोना वर्षों तक समाप्त न होगा।
तुम्हारी ही करतूत तो थी।
जी में आता है कि तुम्हें खूब पीटें।
हाय राम, क्या कह गयी?
अप्रसन्न न होना चितचोर!
मन की तो तुम सब जानते ही हो।
हम, और तुम्हें पीटें?
अच्छा कुछ अपनी सुनाओ।
कैसे दिन बीतते थे?
मक्खन-मिश्री मिलती थी या नहीं?
वहाँ ऐसी कुन्ज कहाँ,
जहाँ बैठकर बाँसुरी बजा सको।
गायों को चराना कौन कहे, दर्शन भी न होते रहे होंगे?
अच्छा यह सब जानें दो,

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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