तुम अब तक कुछ बोले नहीं श्याम!
कुछ तुम भी कहो।
हमारी कहाँ तक सुनोगे,
हमारा रोना वर्षों तक समाप्त न होगा।
तुम्हारी ही करतूत तो थी।
जी में आता है कि तुम्हें खूब पीटें।
हाय राम, क्या कह गयी?
अप्रसन्न न होना चितचोर!
मन की तो तुम सब जानते ही हो।
हम, और तुम्हें पीटें?
अच्छा कुछ अपनी सुनाओ।
कैसे दिन बीतते थे?
मक्खन-मिश्री मिलती थी या नहीं?
वहाँ ऐसी कुन्ज कहाँ,
जहाँ बैठकर बाँसुरी बजा सको।
गायों को चराना कौन कहे, दर्शन भी न होते रहे होंगे?
अच्छा यह सब जानें दो,