बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 46

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

8. इस मक्खन का क्या करूँ?

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हा नटवर!
देखो तो, तुम्हारे बिना बेचारे ग्वाल-बाल
चुपचाप उदास बैठे हैं।
ये भला, शान्ति से बैठने वाले थे?
खेलने के लिये कम नहीं हैं,
पंद्रह-बीस हैं। किंतु
एक तुम्हारे न होने से इन्होंने खेलना छोड़ दिया।
सबका चेहरा उतरा हुआ है।
चलूँ, इन्हें मक्खन खिलाकर
कुछ देर इन्हीं के साथ बातें करूँ।
अरे छोरों!
तुम चुपचाप क्यों बैठे हो?
कुछ खेलते नहीं?
लो, यह हाँड़ी भर मक्खन है,
आपस में बाँटकर खा लो।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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