बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 45

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

8. इस मक्खन का क्या करूँ?

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तो इसको रख कर खराब क्यों करूँ,
चलूँ, किसी को खिला दूँ।
उनसे कह दूँगी कि
इकट्ठा करके रक्खा हुआ सब मक्खन बिल्ली खा गयी।
थोड़ा बिगड़ लेंगी, और क्या होगा,
पर मुझसे घी तो न बनेगा!
वे ही आयेंगी तो बना लिया करेंगी।
अरे, हाँड़ी तो भर गयी,
इसमें कई बालक खा सकते हैं।
गाँव में किसी को देना ठीक नहीं।
ऐसा करने से मैं सास जी से बहाना न कर सकूँगी।
चलूँ बन की ओर,
वहाँ ग्वाल-बाल गाय चराते होंगे,
उन्हीं को खिला दूँ।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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