बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 39

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

7. रे भौंरे, मत गूँज

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आखिर यहाँ बैठे-बैठे करूँगी ही क्या!
घर में निकम्मी के नास से बदनाम तो हूँ ही।
सास-पति की डाँट-फटकार सुनने का तो
पहले से ही अभ्यास था,
हाँ, अब कभी-कभी मार भी पड़ने लगी है।
सो इसकी भी मुझे चिन्ता नहीं।
डंडे पड़ते हैं,
मैं कल्पना करती हूँ कि नटखट कन्हैया मेरे शरीर पर
वंशी से थपकी दे रहा है।
आह!
कुछ न पूछो, प्यारे।
फिर तो पता नहीं चलता कि
मारने वाला मार कर कब चला गया।
अरे, एक बात याद आ गयी,
मुझे इस प्रकार सजी देखकर
सासजी को कहीं क्रोध न आ जाय।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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