बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 38

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

7. रे भौंरे, मत गूँज

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नहीं, निहीं, प्रियतम!
मेरा धर्म यह नहीं है।
अब मैं समझ गयी।
पता नहीं तुम किस क्षण आ जाओ,
आकर अपनी वस्तुओं को इस दशा में देखोगे
तो मुझे क्या कहोगे।
देखो प्यारे!
आज मैंने खूब अच्छी तरह स्नान किया है,
तुम्हारे प्रिय सुघर, चिकने तथा गोरे अंगों को निखार दिया है,
सुगन्धित अंगराग भी लेप लिया है।
देखो माधव!
मेरी यह चूनर कितनी अच्छी है,
हाय, मेरी आज की वेष-भूषा तुम देखते तो कहते!
श्वेत और सुगन्धित पुष्पों से युक्त मेरी वेणी कैसी लहरा रही है।
किंतु कान्हा!
यह सब तो कर लिया, अब करूँ क्या?
आह, कहीं तुम कदम्ब पर चढ़े बैठे होते,
मधुर-मधुर मुरली टेरते होते।
कौन जाने, शायद बैठे ही हों।
तो उधर ही चलूँ,

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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