क्या कहा? देखकर क्यों नहीं चलती?
देखकर क्या चलूँ निर्दयी!
आँख खोलते ही गरम-गरम सेरों धूल
आँख में भर जाती है।
आँख में धूल ही भर जायगी
तो कन्हैया को देखूँगी कैसे?
अच्छा क्षमा कर भाई!
मेरा ही अपराध था।
तुझसे कौन झगड़े।
मुझे तो वहाँ उस कुंज में जाना है।
आह! आ गया कुंज।
धीरे-धीरे चलूँ,
पीछे से जाकर चितचोर की आँखें बंद कर लूँगी।