बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 32

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

6. कल आयेंगे

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तेरा क्या ठिकाना,
तुझ पर अब विश्वास नहीं रहा।
फिर भी तेरे कहने से मैं सब नाच नाचूँगी।
दूसरों को क्यों दुःख दूँ?
अच्छा तो चलना चाहिये।
किंतु दुपहरी जल रही है,
गर्म-गर्म लपटें निकल रही हैं-
जान पड़ता है ऊपर से कन्हैया को न देखकर
सूर्य भगवान् उसे व्रज की गलियों में ढूँढ़ने के लिये
धीरे-धीरे नीचे उतर रहे हैं।
सारी धरती गोपाल के विरह में जल रही है।
तू बड़ा निर्दयी है मन!
इतने पर भी तू कहता है कि चल।
अच्छी बात है, चलूँगी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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