मैं कबसे तड़प रहीं हूँ।
यदि लोगों की बात सच हो तो
आकर मुझे याद दिला दो।
कल बासंती के साथ गयी थी।
बेचारी रो-रोकर कहने लगी-
‘सखी! जब रास की याद आती है
तो हृदय में बड़ी पीड़ा होती है।
उस समय जितना आनन्द मिलता था,
उससे कई गुना कसक अब होती है।
हाय! उनकी मुरली क्या थी,
परम आनन्दमयी तरंगों की निर्झरिणी थी।
वह दिन नहीं भूलता, जब मेरी ओर आते-आते
थिरककर तेरी ओर चले गये थे।
माखन चुराते समय जब कभी पकड़े जाते थे
तो ऐसा भोला मुँह बनाते थे मानो कुछ जानते ही नहीं।