बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 25

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

5. कैसे थे वे दिन?

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मैं कबसे तड़प रहीं हूँ।
यदि लोगों की बात सच हो तो
आकर मुझे याद दिला दो।
कल बासंती के साथ गयी थी।
बेचारी रो-रोकर कहने लगी-
‘सखी! जब रास की याद आती है
तो हृदय में बड़ी पीड़ा होती है।
उस समय जितना आनन्द मिलता था,
उससे कई गुना कसक अब होती है।
हाय! उनकी मुरली क्या थी,
परम आनन्दमयी तरंगों की निर्झरिणी थी।
वह दिन नहीं भूलता, जब मेरी ओर आते-आते
थिरककर तेरी ओर चले गये थे।
माखन चुराते समय जब कभी पकड़े जाते थे
तो ऐसा भोला मुँह बनाते थे मानो कुछ जानते ही नहीं।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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