बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 24

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

5. कैसे थे वे दिन?

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किन्तु यह समझ में नहीं आता कि
अभी कुछ ही दिन पहले हमलोग
साथ-साथ कुन्जों में विहार किया करते थे।
जिस किसी से कहती हूँ कि
किसी पूर्वजन्म के बचपन के साथी कन्हैया से मिलना चाहती हूँ,
वही मुझे बावरी-पगली आदि बताता है।
कहता है कि वर्षों जिसके साथ नाचती-खेलती रही,
उसको किसी पूर्वजन्म का साथी बताती है।
क्या करूँ भाई, अपने होश को,
मुझे तो यह सब याद नहीं आता।
बावरी कहो, दीवानी कहो,
जो जी में आये, कहो।
प्यारे माधव!
तुम तो जानते ही होगे,

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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